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महर्षि पतञ्जलिकृतं योगदर्शन

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更新日期:2018-12-30

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महर्षि पतञ्जलिकृतं योगदर्शन(圖1)-速報App

प्रस्तुत टीका

योगदर्शन की इस टीका से, योग क्या है ? इतना तो समझ में आ सकता है किन्तु योग की स्थितियाँ साधना में प्रवृत होने के पश्चात् ही समझ में आती हैं | तप, स्वाध्याय, ईश्वर – प्रणिधान और ओम् के जप से आरम्भ हो जाती हैं जिससे अविधादि क्लेशों के क्षीण होने पर द्रष्टा आत्मा जागृत होकर कल्याणकारी दृश्य प्रसारित करने लगता है | उसी के आलोक में चलकर समझा जा सकता है कि महर्षि पतञ्जलिकृत योगसूत्रों का अभिप्राय क्या है ? योग प्रत्यक्ष दर्शन है, यह लिखने या कहने से नहीं आता | क्रियात्मक चलकर ही साधक समझ पाता है कि जो कुछ महर्षि ने लिखा है उसका वास्तविक आशय क्या है |

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महर्षि पतञ्जलिकृतं योगदर्शन(圖2)-速報App

दृष्टा - दृश्य संयोग से योग साधना की जाग्रति

दृष्टा - दृश्य संयोग - जिस परमात्मा की हमें चाह है, जिस सतह पर हम हैं वह परमात्मा उसी स्तर से मार्ग-दर्शन करने लगे | हमारी साधना ऐसी हो कि वह जागृत हो जाय, वह निर्विकार दृष्टा दृश्य प्रसारित करने लगे, पुरुष के लिये भोग और अपवर्ग का सम्पादन करने लगे अर्थात लोक में समृद्धि और परमश्रेय की व्यवस्था देने लगे, अपनी विभूतियों से अवगत कराये - यही है दृष्टा - दृश्य का संयोग - जिससे क्लेश नष्ट होते हैं और कैवल्य, अनामय पद की प्राप्ति होती है | - स्वामी श्री अड़गड़ानन्दजी

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महर्षि पतञ्जलिकृतं योगदर्शन(圖3)-速報App

लेखक के प्रति.....

पूज्य स्वामीजी द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता के भाष्य ‘यथार्थ गीता’ का विश्व जनमानस में समादर की भावना देखकर भक्तों और साधकों ने निवेदन किया कि पातञ्जल योगदर्शन पर भी पूज्यश्री कुछ कहने की कृपा करें क्योंकि योग स्वानुभूति है जिसे मात्र भौतिक स्तर पर समझा नहीं जा सकता | पूज्य–चरण एक महापुरुष हैं, योग के स्तर से स्वयं गुजरें हैं | भक्तों के आग्रह पर महाराजजी ने कृपा कर जो प्रवचन दिये, प्रस्तुत कृति उसी का संकलन है |

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महर्षि पतञ्जलिकृतं योगदर्शन(圖4)-速報App

धर्मशास्त्र - विश्व का आदि धर्मशास्त्र गीता

आज से ५२०० वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण ने अपने उपदेश में कहा कि इस अविनाशी योग को मैंने कल्प के आदि में सूर्य से कहा था | सूर्य ने अपने पुत्र मनु से कहा | मनु ने इस स्मृति ज्ञान को सुरक्षित रखने कि लिए स्मृति की परम्परा चलाई और अपने पुत्र इक्ष्वाकु से कहा | उनसे राजऋषियों ने जाना | इस महत्वपूर्ण काल से यह योग इसी पृथ्वी में लुप्त हो गया था | वही पुरातन योग मैँ तेरे प्रति कहने जा रहा हूँ | इस प्रकार सृष्टि का आदि धर्मशास्त्र आदि मनुस्मृति गीता ही है |

कालान्तर में उन्हीं आदि मनु के समक्ष अवतरित वेद इसी गीता का विस्तार है | अन्य शास्त्र समयानुसार विश्व की विविध भाषाओं में ईश्वरीय गायन श्रीमद्भगवदगीता की ही प्रतिध्वनि हैं | आपका धर्मशास्त्र गीता है | धर्म क्या है? सत्य क्या है? उसे प्राप्त कैसे करें? यज्ञ, कर्म, वर्ण, यज्ञ करने का अधिकार मानव मात्र को क्यों? और गीता का फल लोक में समृद्धि,परमश्रेय की प्राप्ति इत्यादि जानकारियों के लिए देखें पूज्य स्वामी श्री अड़गड़ानन्दजी कृत श्रीमद्भगवद्गीता की व्याख्या "यथार्थ गीता" |

महर्षि पतञ्जलिकृतं योगदर्शन(圖5)-速報App

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महर्षि पतञ्जलिकृतं योगदर्शन(圖6)-速報App